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चूल्हा कैसे सुलगाऊँ ? / उषा यादव
Kavita Kosh से
कितने सुंदर, कितने सारे।
अपने बर्तन मुजकों प्यारे।
कल मेले से इनको लाई।
चूल्हा, चक्की और कढ़ाई।
छोटे-छोटे लोटा-थाली।
छुटकी चम्मच, नन्हीं प्याली।
है परात बस थोड़ी भारी।
तवा-कुकर से सजी पिटारी।
कलछी है, चकला-बेलन भी।
वाह। भगोना भी, ढक्कन भी।
चाहूँ तो मैं चाय बनाऊँ।
चाहूँ चावल-दाल चढ़ाऊँ।
दादी की फरमाइश खिचड़ी।
भैया माँग रहा है रबड़ी।
ओहो, झटपट सभी पकाऊँ।
पर चूल्हा कैसे सुलगाऊँ?