भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चूहा मोटा / राकेश रंजन
Kavita Kosh से
दिल का खोटा चूहा मोटा
ले भागा बन्दर का लोटा
लुकता-छिपता निकला झटपट
लोटे को लुढ़काता खटपट
गया छिपाने झड़बेरी की झाड़ में ।
वहाँ झाड़ में बागड़ बिल्ला
झपट पड़ा चूहे पर चिल्ला
सबक सिखा दूँ आ जा बेटा –
कहकर मारा कड़ा चमेटा
उड़ा हवा में चूहा अटका ताड़ में ।
वहाँ एक था बाज बहादुर
गए काम से आज बहादुर –
कहा बाज ने – सुनो भतीजा
बुरे काम का बुरा नतीजा
चलो तुम्हारी असली जगह तिहाड़ में ।
चूहा बोला दाँत निपोरे –
मुझे न कोई चोर कहो रे
सच्चाई का पहने चोला
मैं फकीर हूँ लेकर झोला
निकल जाऊँगा रहने किसी पहाड़ में !