भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चूहों का अचार / नज़ीर अकबराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फिर गर्म हुआ आन के बाज़ार चूहों का।
हमने भी किया खोमचा तय्यार चूहों का।
सर पांव कुचल कूट के दो चार चूहों का।
जल्दी से कचूमर सा किया मार चूहों का॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥1॥

आगे थे कई अब तो हमीं एक हैं चूहे मार।
मुद्दत से हमारा है इस आचार का व्यौपार॥
गलियों में हमें ढूंढ़ते फिरते हैं ख़रीदार।
बरसे हैं पड़ी कौड़ी, रूपे पैसों की बौछार॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥2॥

सूखे जिसे तरकारी से तलने के हों दरकार।
तो सूखे भी खूंटी पे लटकते हैं कई हार॥
कुछ तेल के कुछ पानी के कुछ चटनी है तय्यार।
किस तरह की लज़्ज़त है तू चख देख मेरे यार॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥3॥

दीमक की मिर्च लाल सड़ी लीकों की राई।
दुम टांग नली खोपरी नस नस है सड़ाई॥
और जिस पे सड़ी मोरी की कीचड़ है मिलाई।
जब ऐसी बनी ज़ोर मजे़दार खटाई॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥4॥

कुछ केंचुए कुछ बिच्दू हैं, कुछ नाग हैं काले।
भूने हुए च्यूंटे भी कई सेर हैं डाले॥
कुछ टुकड़ियां कुछ मक्खियां कुछ मकड़ी के जाले।
और उनके सिवा कितने मसाले हैं जो डाले॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥5॥

कुछ इसमें अकेले न चूहे सेर पड़े हैं।
घूंस और छछूंदर के कई ढेर पड़े हैं॥
जूं पिस्सू मच्छर और कई सेर पड़े हैं।
और खाट के खटमल भी सवा सेर पड़े हैं।
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥6॥

अव्वल तो चूहे छांटे हुए क़द के बड़े हैं।
और सेर सवा सेर के मेंढ़क भी पड़े हैं॥
चख देख मेरे यार यह अब कैसे कड़े हैं।
चालीस बरस गुज़रे हैं जब ऐसे सड़े हैं॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥7॥

चिमगादड़ अबाबील की टांटे भी पड़ी हैं।
उल्लू के पर और गिद्ध की बीटें भी पड़ी हैं॥
गोबर की डली बीट की खातें भी पड़ी हैं।
सर कौवों के और चील की आंतें भी पड़ी हैं॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥8॥

चूहों का जुदा चूहों की मूछों का जुदा है।
दुम का वह जुदा कान का आंखों का जुदा है॥
लोटे में सड़ी खाल का बालों का जुदा है।
प्याली में निरी सूत सी आंतों का जुदा है॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥9॥

खाबे जो इस आचार की एक मूंछ की झुंडी।
खुल जावे सब उसके वह दिलो जान की घुंडी॥
आती है चली मुल्कों से हुंडी पे जो हुंडी।
जो सर है चूहे का सो मजे़ में है वह मुंडी॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥10॥

गर पांच रूपे होवें तो एक छिपकली ले लो।
और एक अशरफ़ी को छछूंदर सड़ी ले लो॥
मत घूंस के तईं देख के तरसाओ जी ले लो।
ले लो अजी ले लो, अजी ले लो अजी ले लो॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥11॥

जब दांत तले खोपरी भरती है चराके।
खुल जाते हैं लज़्ज़त के दिलों बीच भभाके॥
चखते ही जुबां भरती है इस ढब के तड़ाके।
शबरात में जिस तरह से छुटते हैं पटाके॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥12॥

लाता है कोई चिकने घड़े और कोई कोरे।
प्याला कोई थाली कोई पीतल के कटोरे॥
क्या लेंगे अब उसको कि जो मुफ़्लिस हैं छछोरे।
खावेंगे वही जोकि हैं दौलत के चटोरे॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥13॥

पाचन के ऊपर अब तो यह चूरन का चचा है।
जो खावे तो फिर पेट का पत्थर भी पचा है॥
तुरशी में खटाई में यह अब ऐसा रचा है।
जो आम का बाबा है तो लीमू का चचा है॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥14॥

आगे जो बनाया तो बिका तीस रुपे सेर।
और गहकी गये ले इसे पचीस रुपे सेर॥
जाड़ों में यह बिकता रहा बत्तीस रुपे सेर।
और होलियों में बिता है चालीस रुपे सेर॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥15॥

रोज़ी तो हमारी यह उतारी है खु़दा ने।
दिन रात पड़े हमको यह आचार बनाने॥
और पेट के भी वास्ते दो पैसे कमाने।
लज़्ज़त को ”नज़ीर“ इसकी जो खावे वही जाने॥
क्या ज़ोर मजे़दार है आचार चूहों का॥16॥

शब्दार्थ
<references/>