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चेकोस्लोवाकिया का प्रवास गीत / श्यामनन्दन किशोर
Kavita Kosh से
दिन का क्या? कट ही जाता है!
पर रात कटे? आसान नहीं!
कुछ भीड़ मिली, कुछ लोग मिले,
कैसे-कैसे संयोग मिले!
सब देव दिखायी पड़ते हैं
मिलता कोई इन्सान नहीं!
मन में कितने जज़बात भरे,
इस रात न कोई बात करे!
देता अजनबी बना मुझको,
ऐसा देखा सुनसान नहीं!
छत ही आकाश बना मेरा।
मन ही उच्छ्वास बना मेरा।
कुछ यश, कुछ धन, सम्मान मिले!
ये तो सुख के सामान नहीं!
(29.12.73)