चेतना सरोवर के तट पर / निदा नवाज़
मैं पूछता हूँ
सांझ की लालिमा से
क्या रक्त उसी रंग का नाम है
जो हमारे हर शब्द का स्वभाव
हर कविता का अभिमान
और हर पुस्तक का शीर्षक
ठहर गया?
मैं पूछता हूँ
घनघोर घटाओं से
क्या वर्षा उसी जल का नाम है
जो आंसुओं की नदियाँ बनकर
बहा लेजाती है आँखों से
सपनों के साथ-साथ
आदर भी ?
- “मैं पूछता हूँ
आकाश में उड़ते सूर्य से”*
क्या न्याय यसी सत्य का नाम है
कि मनुष्य हर पल
सौ बार मरे
और फिर भी उस पर
जीवित होने का
कडुवा आरोप लगे?
मैं पूछता हूँ
पूर्णिमा के चंचल चाँद से
क्या प्रेम उसी शक्ति का नाम है
जो विश्वास के माथे पर
संदेह बनकर
लक्ष्मण-रेखा खिंचवाए
और अग्नि-परीक्षा ले?
मैं पूछता हूँ
इतिहास के पन्नों पर बिखरे
कठोर शब्दों से
क्या अनुभव उसी प्रकाश का नाम है
जो घटनाओं की उस नागिन की
मस्त आँखों से फूट कर वशीभूत करता है
जो डस लेती है
शरीर के साथ साथ
आत्मा को भी?
मैं पूछता हूँ
प्रात:कालीन पवन की
शर्मीली आहट से
क्या वायु उसी आंधी का नाम है
जो हर बार मेरे
उस चेतना-सरोवर से गुज़रती है
जहां से उभरने वाले
सभी प्रश्नों के सूर्य
घायल होकर दबे पांव
मेरे ही अवचेतना-सागर में
डूब जाते है?
प्रश्न करते करते
मैं
थके हुए घोड़े की तरह
हांफ जाता हूँ
और अपने ही
चेतना-सरोवर के तट पर
बैठे बैठे मर जाता हूँ.
- पंजाबी कवि पाश की एक कविता की दो पंक्तियाँ