चेतावनी / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
एक बात पूछती हूँ तुमसे
ऐ.... बुद्धिजीवी, सुन तो लो
क्यूं धूम्रपान अतिआवश्यक है?
बिन मदिरा जीवन चुन तो लो...!
अति घातक तम्बाकू सेवन
जहाँ स्वास्थ की निश्चित हानि है
फिर सांसों की कीमत देकर
क्या विपदा घर ले जानी है...?
’’स्वास्थ्य ही धन है‘‘ जग जाहिर
किस मानक सेंध लगाते हो
बहुमूल्य मिला बस ’’एक जीवन‘‘
क्यूं अपनी चिता सजाते हो...?
एक फोड़ा-फुंसी हो तन, तो
औषधीय लेप लगा लेते
खुद गटक रहे गुटखा के गुण
विष खाकर भी मुस्काते हो...?
मदिरालय पर, तम्बाकू पर
हर डब्बे पर चेतावनी थी
पर अनदेखी कर दी तुमने
जो पलभर बड़ी सुहावनी थी...
सही खान-पान और रहन-सहन
यदि न हो, तो तुम तय कर लो
दुर्दशा लिखी अंतिम पल में
घिरे घोर कष्ट अति, भय कर लो...
अरे, सुनो सुनो, नादान सुनो
कई जतन लगा जो संजोया
सब हवन चला जाए पल में
यदि स्वास्थ्य का धन तुमने खोया...
आगाह कर रही ’ज्योतिर्मय‘
स्वयं के संहारक तो बनो
आहुति ले लेगी पल में
अति कष्ट के मृत्यु पथ न चुनो...