भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेतावनी 3 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चारि को सम्पति संगति है, इतनो लगि कौन मनी करना।
एक मालिक नाम धरे दिलमें, धरनी भवसागर जो तरना॥
निज हँक्क पिछानु हकीकत जानु, न छोड इमानदुनीधर ना।
पगु पीर गहो पर पीर हरो, जियना न कछू हक है मरना॥10॥