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चेत कर नर, चेत कर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

(राग भैरवी-ताल रूपक)

चेत कर नर, चेत कर, गफलतमें सोना छोड़ दे।
जाग उठ तत्काल, हरि-चरणोंमें चितको जोड़ दे॥
मनुज-तन संसारमें मिलता नहीं है बार-बार।
हो सजग ले लाभ इसका, नाम प्रभुका मत बिसार॥
विषय-मदमें चूर होकर क्यों दिवाना हो रहा।
श्वास ये अनमोल तेरे, क्यों बृथा तू खो रहा॥
त्याग दे आशा विषयकी, काट ममता-पाशको।
ध्यान कर हरिका सदा, कर सफल हर-‌एक श्वासको॥
विषय-मदको छोड़ हरि-पद-प्रेम-मद तू पान कर।
हो दिवाना प्रेममें श्रीरामका गुणगान कर॥
परम प्रियतम हृदय-धनके प्रेम मदमें चूर हो।
छका रह दिन-रात तू आनन्दमें भरपूर हो॥