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चेहरा अफ़रोज़ हुई पहली झड़ी, हमनफसो शुक्र करो / नासिर काज़मी
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चेहरा अफ़रोज़ हुई पहली झड़ी, हमनफसो शुक्र करो
दिल की अफसुर्दगी कुछ रो हुई, हमनफसो शुक्र करो
आओ फिर यादे-अज़ीजां ही से मैखान-ए-जां गर्म करें
देर के बाद ये महफ़िल तो ज़मी, हमनफसो शुक्र करो
आज फिर देर की सोई हुई नद्दी में नई लहर आई
देर के बाद कोई नाव चली, हमनफसो शुक्र करो
रात भर शहर में बिजली सी चमकती रही हम सोये रहे
वो तो कहिये कि बला सर से टली,हमनफसो शुक्र करो
दर्द की शाखे-तही-कासा में अश्क़ों के नये फूल खिले
दिल जली शाम ने फिर मांग भरी, हमनफसो शुक्र करो
आसमां लाल-ए-ख़ूनी की नवाओ से जिगर चाक हुआ
कस्रे-बेदाद की दीवार गिरी, हमनफसो शुक्र करो।