भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरा चेहरा तू ढूँढ़ता है नमक / सर्वत एम जमाल
Kavita Kosh से
चेहरा चेहरा तू ढूँढ़ता है नमक
ज़ख़्म पर रख के देख, क्या है नमक
उन दिनों एतबार होता था
आजकल कौन सोचता है नमक
बुलबुले गुम हुए समुन्दर के
दूर तक रेत पर बिछा है नमक
सूरतें अब भी हैं ग़ुलामी की
अब मगर कौन तोड़ता है नमक
मीठी बोली कहीं नहीं मिलती
लहज़ा-लहज़ा रचा-बसा है नमक
सोने चांदी को शर्म आ जाए
कभी उस दाम भी बिका है नमक
अब के क्या काम कर गई बारिश
कितने चेहरों का धुल गया है नमक
देख सर्वत समय-समय का फेर
आज इंसां को खा रहा है नमक