भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा / नवनीत पाण्डे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने देखा है अंधेरा
जानता हूं अंधेरे को
इसीलिए
भागता हूं अंधेरे से
नहीं चाहता अंधेरा
अंधेरे में खो जाता है चेहरा
चेहरा
मेरा, तुम्हारा, किसी का भी
इसी चेहरे के लिए तो आदमी
सोता है जागता है
रात-दिन भागता है
जीता है, मरता है
धुरी पर चलता है
अंधेरे का भूत
जब चेहरे पर उतरता है
अंधियाकर आदमी
आदमी से डरता है