भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माँ मुझे पहचान नहीं पाई
जब मैं घर लौटा
सर से पैर तक धूल से सना हुआ

माँ ने धूल पॊंछी
उसके नीचे कीचड़
जो सूखकर सख़्त हो गया था साफ़ किया

फिर उतारे लबादे और मुखौटे
जो मैं पहने हुए था पता नहीं कब से
उसने एक और परत निकालकर फेंकी
जो मेरे चेहरे से मिलती थी

तब दिखा उसे मेरा चेहरा
वह सन्न रह गई
वहाँ सिर्फ़ एक ख़ालीपन था
या एक घाव
आड़ी तिरछी रेखाओं से ढँका हुआ ।

(1989)