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चेहरा / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
इस धुन्धयाये
खण्डित
सहस्त्र दरारों वाले
दर्पण में
मुझे अपना चेहरा
साफ़ नहीं दिखता
जब कभी
अखण्डित कोने से
दीख जाता है
तो
कहीं अहम्
कहीं स्वार्थ की
बेतरतीब लकीरों से
कटा-पिटा होता है