भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरे का पानी / अमलेन्दु अस्थाना
Kavita Kosh से
तुम्हारे चेहरे का पानी उतर गया,
जमाने की प्यास बुझ गई,
जितना सोचा दुनिया उतनी उलझ गई,
कोरा कागज पढ़ा अमल गुत्थी सुलझ गई।।