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चेहरे की सिकुड़नें / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
(कवि की अन्तिम कविता)
थकी हुई औरत के चेहरे की सिकुड़नें
किसी एक परिवार की लम्बी मुश्किलों की
आड़ी सतरें हैं
उनकी लिखावट कुछ अलग दूसरों से है
क्योंकि परिवार के पुरखों ने अलग-अलग
भाषाएँ लिख दी हैं I
(25 दिसम्बर 1990)