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चेहरे के पीछे छिपा चेहरा / येव्गेनी येव्तुशेंको / विनोद दास

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कहाँ रहता है
चेहरे के पीछे छिपा चेहरा
हर एक को ख़ुद के चेहरे के बारे में
सब कुछ जानना ही चाहिए

लोगों को अक्सर अपने खुद के बारे में
जरा सा भी अता-पता भी नहीं होता
हममें से हर कोई ख़ुद को बचाने के लिए
आला वक़ील बन जाता है

नीरो ज़ाहिरा तौर पर सोचता था
कि वह एक कवि है
हिटलर सोचता था कि वह इस दुनिया को
दुखों से निजात दिला देगा

एक कमीना सोचता है : मैं बेहद फराक़दिल हूँ
एक छिछला आदमी समझता है : मैं गहरा हूँ
कई दफ़ा ईश्वर ठण्डी आह भरकर कहेगा : मैं एक कीड़ा हूँ
कीड़ा फुफकार कर कहता है : मैं ईश्वर हूँ

कीड़े घमण्ड के साथ ऊपर चढ़ते हैं
बुज़दिल बादलों में ख़ुश रहते हैं
सिर्फ़ एक आज़ाद आदमी
सोचता है :
“मैं ग़ुलाम हूँ”

अँग्रेज़ी से अनुवाद  : विनोद दास

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Евгений Евтушенко
                    Лицо лица

Где оно, лицо лица? Важно, если все
Разберутся до конца в собственном лице.
Людям часто невдогад собственное "Я".
Каждый - лучший адвокат самого себя.

Скряга думает: я щедр, дурень: я глубок.
Бог порой вздохнёт: я червь. Червь шипит: я бог.
Лезут гордо черви вверх. Трус кричит: "Я храбр!"
Лишь свободный человек думает: я - раб.

1973