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चेहरे चेहरे मास्क लगाकर बैठे हैं / कैलाश झा 'किंकर'
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					चेहरे चेहरे मास्क लगाकर बैठे हैं
आँखों में हम भर कर सागर बैठे हैं। 
दुनिया के कोने-कोने में बात गयी
फिर भी वे सब झूठ बताकर बैठे हैं। 
जीवन से जो खेल गये मक्कारी में
उनको क्योंकर दोस्त बनाकर बैठे हैं। 
लाखों जान गयी हैं इस कोरोना से
वे तो अब भी ख़्वाब सजाकर बैठे हैं। 
चलते-चलते पाँव थके हैं दस दिन से
सड़कों पर हम आग जलाकर बैठे हैं। 
एक नहीं सौ-सौ बाधाएँ हैं 'किंकर' 
दादाजी फिर घर के बाहर बैठे हैं।
	
	