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चेहरे पे आप के हो भला क्यों न रौशनी / प्राण शर्मा
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चेहरे पे आप के हो भला क्यों न रौशनी
सुनते हैं पाँचों उँगलियाँ हैं घी में आपकी
हर चीज़ हाथ आई है माना कि आपके
अपना ही साया हाथ में आया है क्या कभी
कुछ तो ख़्याल कीजिए अपने घरों का आप
जैसे ख़्याल करते हैं सरहद का संतरी
हर चीज़ व्यर्थ जान के कूड़े में फेंक मत
हर चीज़ का महत्व है क्या फूल क्या कली
माना कि होनहार है हर बात में मगर
दुनिया के इल्म में अभी बच्चा है आदमी
जानेंगे तुझको लोग सभी कल को देखना
माना कि आज उनके लिए तू है अजनबी.
इक से किसी के दिन नहीं होते हैं साहबों
क्या एक जैसी रोज छिटकती है चाँदनी