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चेहरे पे कुछ तनाव हो माथे पे बल पड़े / कांतिमोहन 'सोज़'

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चेहरे पे कुछ तनाव हो माथे पे बल पड़े।
चीख़ो कि उसकी नींद में कुछ तो ख़लल पड़े ।।

ऐयाशियों की लौ को फ़लकबोस<ref>गगनचुम्बी</ref> देखकर
महरूमियों के फ़र्श<ref>वंचनाओं का धरातल</ref> से सोते उबल पड़े।

सजने का वक़्त था न समाँ था लिहाज़ा लोग
सर को हथेलियों पे लिए ही निकल पड़े।

बेदर्द वो ज़रूर थे देखा जो मेरा हाल
मानिंदे-बर्फ़ आए शमा से पिघल पड़े।

वो बेखबर हैं वक़्त की रफ़्तार से हनोज़<ref>अभी</ref>
कानों में उनके काश सदा-ए-ग़ज़ल पड़े।

हल्की-सी वो हँसी भी सितम ढा गई यहाँ
पहलू में सोए लाख दिए फक से जल पड़े।

इस राह से बचें ये बहुत चाहते थे सोज़
एक बार चल पड़े तो बहरहाल पड़े॥

शब्दार्थ
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