भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चेहरों को खोजें / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
शहर बड़ा
हैं नाज़ुक रिश्ते
आइये निभायें
ऊँची मीनारों के
जंगल में
दूर-दूर घूमें
सारे इस शोर- गुलगपाड़े में
शामिल हो झूमें
खोये हुए चेहरों को खोजें
उनसे बतियायें
एक नदी बहती है
भीड़ की
उसमें हम डूबें
भागदौड़ करती
इन सड़कों पर
अपने से ऊबें
बीत गया दिन
इसका उत्सव
आइये मनायें