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चेहरो की चोरी करता है / शीन काफ़ निज़ाम



चेहरो की चोरी करता है
आईना आसेबजदा है

जाने क्या उस ने सोचा है
फिर पत्थर के पास खड़ा है

शहर हमारा कुछ मत पूछो
आवाजों का इक सहरा है

आवाजों के जंगल में भी
सन्नाटा ही सन्नाटा है

दोनों तरफ कुहसार खड़े है
बीच में इक दरिया बहता है

आहट है तेरे कदमों की
या कोई पत्ता खड़का है