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चैतक निन्दिया बैरिनियाँ हो रामा / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

चैतक निन्दिया बैरिनियाँ हो रामा
सूतलि छलहुँ घर रे मन्दिरबा
सपनामे एला मनमोहन हो रामा
चैत के निन्दिया बैरिनियाँ
सगरि राति हम जागि गमाओल
बैरिनि भेल कर बेनियां हो रामा
चैत के निन्दिया बैरिनियां
बारह बरस पर रामचन्द्र लउटला
धनी देल विरह बजनियां हो रामा
चैत के निन्दिया बैरिनियां
जौं तोहे आहे सुन्दरि मोर अनुरागिनि
धरहमे भेष जोगिनियां हो रामा
चैत के निन्दिया बैरिनियां
नहि हम सोहागिनि नहि अनुरागिनि
मरब जहर बिख खाय हो रामा
चैत के निन्दिया बैरिनियां