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चैती वसंत / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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पीपर के पात-पात झरल हे
लगल जैसे खेत सब चरल हे
टूसा से पोर-पोर भरल हे
महुआरी कोंची ले फरल हे
ललकी किरिनयाँ ीाी उतरल हे
धरती पर हौले से छितरल हे
खेत में गेहूँ भी बिथरल हे
दाना ले चिड़याँ सब विखरल हे

सुग्गा के चुग्गा अगाड़ी हे
नींबू के गाछ लदल बाड़ी हे
नयकी सब देखलों ई झाड़ी हे
तेजी से भाग रहल बादल के गाड़ी हे

अकवन में फूल लदल,
जियर चलल चाल बदल
भाग रहल मैना दल,
चैती पुरबा चंचल

गाय गोरू खुलल हे
बुतरू अभी सुतल हे
सब घर में आय-माय उठल हे
राह में रंभाय जे गाय छुटल हे

कोयल के बोल चहकावे हे
मधु मिलल गीत बड़ी गावे हे
पुरबा ई मनके बहरावे हे
कहाँ से वसंत चलल आवे हे