भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चैती / बुद्धिनाथ मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँसों के गजरे कुम्हलाए
आप न आए ।

यह अमराई कौन अगोरे
अब तो हुए हैं भार टिकोरे ।
अंग-अंग महुआ गदराए
आप न आए।

किसे दिखे यह मेघ उमड़ना
सूने आँगन नीम का झरना ।
याद अगिन पुरवा सुलगाए
आप न आए।

टेसूवन दहके अंगारे
झुलस-झुलस बाँसुरी पुकारे ।
बाँहों के गुदने अकुलाए
आप न आए।