चैतोॅ के दुपहरिया!
झहर-झहर पछिया बतासोॅ में बोलै छै पतझरिया!
पिपरोॅ के ठारी पर छाया में मैना छै मूँ बाबी,
फेंड़ी पर बैठलोॅ छै परदेशी दूरोॅ के लू पाबी,
चक्-चक्-चक् नाँचै छै रौदी के गूजरिया!
आमोॅ के सुखलोॅ रं मंजर पर लट्टू छै भमरा बिहानै सें
चुट्टी के खोन्हा उजाड़ै लेॅ लागलोॅ छै बच्चा जी जान्हैं सें
गाछी सें उतरी केॅ धरती पर भागै छै गिलहरिया!
पछियारी ओसरा पर दादी छै माथोॅ उघारी केॅ
बीछै छै भौजी ने लीखर सब
केशोॅ केॅ झारी-बिथारी केॅ
ठाम्हैं टा जमलोॅ छै पच्चीसी, उछलै छै पियरिया!
दूरोॅ में बैठली छै सभ्भै सें, घोघो में मूँ झाँपी
भीतर् है सें देखै छै दादी केॅ, भौजी केॅ भौं चाँपी
टधरै छै गालोॅ पर,
घामोॅ सें लटसट छै बहुरिया!
चैतोॅ के दुपहरिया!