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चैत के इंजोरिया / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा

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चैत के इंजोरिया उगल हे टहपोर।
मटकी से दूध गिरल फैलल सब ओर
चिरई-चुरमुन्नी सब खोंता मंे बंद,
धरती पर उतरल इंजोरिया के छन्द
रात हे नीरव पात निस्पंद,
नदी-नाला सुत्तल हे धारा भी बन्द
राम अभी आधे हे लगल जैसे भोर,
चैत के इंजोरिया उगल हे टहपोर।
महुआरी धीरे-धीरे टपके हे
लगल जैसे आय-माय लपके हे
बुतरू के आँख बड़ी झपके हे
धरती के साड़ी बड़ी दपके हे
उमड़ रहल नेह ढरल अँखिया के कोर
चैत के इंजोरिया उगल हे टहपोर।
धरती परी जैसन लगल बड़ी गोर,
मछुआरा बैठल हे नदिया अगोर,
खेत-खलिहान सब दूरतक लखाय,
अंगना इंजोरिया में सुतल आय-माय,
रातरानी परी जैसन दप-दप हे गोर,
चैत के इंजोरिया उगल हे टहपोर।