चैत मास जब लागौ सजनी बिछुरे कुँअर कन्हाइ / बुन्देली
चैत मास जब लागौ सजनी बिछुरे कुँअर कन्हाई।
कौन उपाय करें जा ब्रज में घर अँगना न सुहाई।।
बैसाख मास जब लागौ सजनी घामें जोर जनायौ।
पलक सेजरियन नींद न आई कान्ह कुँअर घर नाहीं।।
जेठ मास जब लागौ सजनी चारऊँ दिसि पवन झकोरे।
ऐसी पवन उठी जा ब्रज में अंग अंग कर डोले।।
असाढ़ मास जब आयौ सजनी चारऊँ दिसि बदरा भारी।
मोरे बोले पपीहा बोले दादुर वचन सुहाई।
सावन मास सुहावनौ महीना रिम झिम जल बरसे।
कान्ह कुँअर की बिछरन पड़ गई झूलन कों जियरा तरसे।।
भादौं मास भयंकर महीना चारों दिसि नदियाँ बाढ़ी।
अपुन तौ स्वामी पार उतर गए हम जमुना जल ठाड़ी।।
कुँआर मास की छिटक चाँदनी बाढ़े सोस हमारे।
आउतन देखे भर भर नैना जाउतन काहू न जाने।
कातिक मास धमर कौ महीना सब सखी कातिक अन्हावै।
हमसी नारि अन्हाउतन छोड़ी कुब्जा कों सुख दीनै।।
अगहन मास अज्ञानौ महीना टैऔनन चुरियाँ आईं।
तलफ-तलफ कै दूबरी हो गई जे लालन के सुमरे।।
फूस मास फस्यानो महीना चलो सखी ब्रज में चलिए।
कै हँसिये नंदलाल लाड़ले कै जमुना जल धंसियै।।
माघ मास सब मधुबन ढूँढे और वृन्दावन कुँजे।
इन कुंजन में निरत करत तेजे नाहर भई कुंजें।।
फागुन मास फरारौ महीना सब ब्रज होली खेले।
औ जगन्नाथ की बारामासी गावें जुगल किसोरी।।
जो कोऊ गावै गाये सुनावै औ चित दै सुनत सुनैया।
बा की बैसी मनोकामना पूरी करत कन्हैया।।