चैन-ओ-सुकूँ गँवा दे, दौलत न ऐसी देना,
नाकाबिले बयाँ हो, हालत न ऐसी देना।
दिल तो है नासमझ ही, कई ख़्वाहिशें करेगा,
रह जाए जो अधूरी, चाहत न ऐसी देना।
मुहब्बत में सर उठाकर जीने की है तमन्ना,
रुसवाई हो जहाँ में, उल्फत न ऐसी देना।
मसरूफियत में हम भी गमे तन्हाई भूल जायें,
हर लम्हा काट खाये, फुरसत न ऐसी देना।
दुनिया में कम नहीं हैं, शोहरत से जलने वाले,
हो ग़मजदा ज़माना, शोहरत न ऐसी देना।
उसूलों की रह गुजर पर ताउम्र चलते जायें,
ईमान डगमगाये, नीयत न ऐसी देना।