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चोट दिल पर लगे तो क्या कीजे / रंजना वर्मा

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चोट दिल पर लगे तो क्या कीजे
दर्दे दिल की कोई दवा दीजे

हो दवा से न ग़र शफ़ा हासिल
बैठ कर रब से तब दुआ कीजे

कम न कीमत हुई मुहब्बत की
मुस्कुराने की इल्तिज़ा कीजे

चाह हो रात भर सितारों की
अभ्र छा जाये अगर क्या कीजे

लोग चिलमन से देखते हैं जहाँ
ऐसी गलियों से न गुजरा कीजे

दर्द कब सोचने से है घटता
सोच का ये न मुद्दआ कीजे

ग़र नज़र से निगाह जाये मिल
दोष नज़रों को मत दिया कीजे

रात उनके बिना नहीं कटती
याद का उनकी आसरा कीजे

इश्क़ है मंजिले मक़सूद अगर
हिज्र की आग में जला कीजे