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चोथो जथारज / हरीश भादानी

Kavita Kosh से
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पूरब री पिरोळ
खुलतां-खुलतां
उड़गी चिड़कोली आंख्यां...
राख्यौड़ी सोध
कसी,कुंवाड़ा सांभ
हुयग्यौ बयीर
धरनी रो धणी......
टुरगी लारै
काकी, भोजाई
डांग रै सायरै बाबो....
नीं दीसै पाळ
खिंडियौड़ी बाड़
खेत आया.......
कै’ आया उजाड़......
देखै एक नै दूजौ
निजरां रै
सूनै झरोखां में आगोतर
आगोतर ...... ओ.....आगोतर
कसमसतै छोटियै
तरणाटी खा’र
कसिया कोछा
एकै सागै
सगळां रै डीलां
तिरछ तड़कीजी
हथाळयां सधगी
खोसण लाग्या
मठोठी दे’र बूझा,
साव उधाड़ा खेलूंणा
पगल्या-पगल्या
रमता-रमता
चुग-चुग फैकग्या
बैरी भाठा-डग्गड़
थप-थप दैयनै
बिछाई गाभण माटी
हँई-हँई
हँईसा बज्जर भींवै
पाड़दी पाळ चारूंमेर
दांतेळ सूं भांज
सूकी सणाट झाड़यां
खूंट सूं खूंट
चिणदी बाड़-
टीडी फाकै नै
अब कै..........
फाकाई करणा पड़सी
ऊभौ गुमेज
टग-टगता हांफीज्या
सूरज रा सातूं घोड़ा
मूंढै रा झाग झरग्या
डीलां रै माथै
बढातै सूरज दीवी साख
हाथां-पगां
आंख्यां नै जोत
भळै रचायी खेत
धरती रै धणी
आंख्या में हिलकै हेज नै
निजर नीं लागै
फाडै तावड़े री
झळमळतै धूंवटै री ओट दियां
ढाक खारटियौ
आई छोटोड़ी
दीवी टिचकारी
जाळ री छिंयां
बजबजते चुड़लै
थाळी बिछा’र पुरसी
जतना री रोटयां-राब
तिरिया-मिरिया
छाछ रो कुलड़ियौ
पेट रै पांण लागी
भीजी रसीजी तिस
बैठग्या सगळा
पंगत जोड़
हुयग्या उडीक
अबकै.....
अबकै बैगौ मांडैली
काळी कळायण आभौ
बाबो बिछाण लाग्यौ
धोळै दिन
सुपनां री लांबी-चोड़ी चानणी
काले बोलैली
मिंदर रै पींपळ सुगनड़ी
अबकै......
अरड़ा’र पड़ैला आभौ
‘‘धाया-धाया बापजी’’
धोकेला आखौ गांव
फाटैला खेतां में
हरियो टांच सोनो
सांसा री लीकां पाड़ी
पाड़ता गया
गिणताई रैया
छांट री घड़ी
गाजणौ-गरड़ाणौ किसौ
चै’रै री छांव तक
नीं छीपण दीवी
उडीकतां-उडीकतां
आंख्यां रै आगै
आया तिरवाळा
नीं आई
आणौई नीं धो बींनै
आई.....सागण बा ही
धाडै़तण आई
पैरयौड़ी
काळा-पीळा धाबळा
भेज्या आगूंच
एक रै लारै एक
आंधळधोटा भतूळिया
बैयग्या
भूंआळी खा-खा..........
चढियोड़ी पूठ आई
हूंआटा-खैखाटा करती
आपरा गाभा फैंक
गांव रा टापरा
छप्पर पैर नाची
ओरा, बरसाळी
पाधरा करती
रड़की बिंयाई
रळकोज रळकि
सूंतगी
आंख्या काळजौ
खेतां री आंतां
दाढ़गी कूआ
छांटो तक नीं रैयो
आंसूड़ो रो.........
माटी री कूख में
सोन ळिया भळकौ दीसतांई
मच चढगी धाड़ैतण
हेमांणी माटी सूं
खूंजा गोथळिया भरिया
फेरियौ झाड़ू
करियौ पणीढो ऊंधो
धोबां-धोबा
नांखदी चूलै में राख
जांवती-जांवती सूंपगी
चोकलिये बैठी
झुरती माऊ नै
आपरो चौथो जारज