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चोथो फेरौ / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
थारौ भोग
म्हारौ सोभाग
थारी रीस
म्हारै पूरबलै जलम रौ करम
थारी उमर
म्हारै माथै री राती रेख
वा इज
म्हारौ सिणगार
थनै रिंझावण
म्हैं पैरूंला गाभा
थनै रमावण
म्हैं खोलूंला गाभा
म्हारी जूंण री अंताखरी
थनै जीतावूंला हमेसा
लौ
म्हैं
चौथौ फेरौ लेवूं।