भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चोरी की तरह ज़ुर्म है दौलत की हवस भी / शहजाद अहमद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चोरी की तरह ज़ुर्म है दौलत की हवस भी
वो हाथ कटें जिनसे सख़ावत नहीं होती

तय हमसे किसी तौर मुसाफ़त नहीं होती
नाकाम पलटने की भी हिम्मत नहीं होती

जिंदानिओं क्यूँ अपना गला काट रहे हो
मरना तो रिहाई की ज़मानत नहीं होती

जो तूने दिया है वही लौटायेंगे तुझको
हमसे तो इमानत में खयानत नहीं होती

किस बेतलबी से मैं तुझे देख रहा हूँ
जैसे मेरे दिल में कोई हसरत नहीं होती