चोर..... चोर..... / रवीन्द्र दास
चोर.... चोर..... मैं ऐसा चोर
जो चोरी से भी गया, हेरा-फेरी से भी गया ।
मैं कभी जब सोता हूँ
उससे पहले सोचता हूँ कि सोने से कुछ नुकसान तो नहीं होगा
सोच की गहराई कब नींद में बदल जाती है
पता नहीं चल पाता
मैं हर मोड़ पर, चाहे रस्ते का हो या जीवन का ,
मैं ठिठक जाता हूँ
मोड़ के सही होने के सवाल पर
और कभी न तो किसी सवाल का
न ही किसी बवाल का
जबाव मिलता है
लेकिन एक मैं हूँ जो छोड़ता ही नहीं सोचना ......
बाढ़ में , बियावान में या रेगिस्तान में
अकेले भटक जाने से बढ़ जाता है खतरा
कभी भटका नहीं
लेकिन कल्पना से गुदगुदा उठता है मन
मैं कवि हूँ न
कभी भी लिख लेता हूँ अननुभूत तथ्य
और निहारता आस-पास की आँखों में
चाहे राजा मरे
या रानी चरित्र च्युत हो जाय
देश तो देश ही रहता है
ढंग से पैदा किया जाय तो
कुकुरमुत्ता हो जाता है मशरूम
चोर हो जाता है गुप्तचर
बशर्ते कि उसे भी मिल जाये सरकारी संरक्षण ।