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चोर देवता / लवली गोस्वामी

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दुःख के सफ़ेद प्रेत संसार के किसी कोने में
मेरा पीछा ही नही छोड़ते हैं
मैं जहाँ जाती हूँ वे चोर-देवता की तरह मेरा पीछा करते हैं

मैं आपको चोर देवता के बारे में बताती हूँ
मेरे बचपन के ये गँवारू चोर-देवता ऐसे देवता नहीं थे
जिन्हे आप राजनीति के लिए उपयोग कर सकें
शायद इसलिए भी वे अप्रसिद्ध रहे

चोर देवता अक्सर असमय-कुसमय मरे बच्चों के प्रेत होते हैं
जिन्हें साधकर इस काम में लगाया जाता है
कि अगर घर से कोई सामान चोरी हो जाये
तो वो चोर का पीछा करें
उसे भय और भ्रम में डाल दे
कि चोर डरकर अपने आप सामान लौटा जाए

ये प्रेत मेरे बचपन से अभी तक मेरे साथ हैं
मैं ख़ुशी लिखना चाहूँ
वे उँगलियाँ मरोड़ कर दुःख लिखवाते हैं
मैं नारे लगाने के लिए चीखना चाहती हूँ
वे गला दबा देते हैं
कंठ से दहाड़ें मारकर रोती हुई औरतें
और मुसलसल सताए गए आदमियों की चीखें निकलती हैं

मैं उन्हें नही भगा सकती
मैंने चोरी किया है अपना अस्तित्व अपने ही बचपन से
मैंने हरे भरे जंगलों से अपने खरगोश जैसे मन को अपहृत करके
उसे तेज़ खंज़र से चीर दिया था

उसके खून से मैं शहरी जीवन का रोजनामचा लिख रही थी
फिर एक दिन मैंने यह अस्तित्व ही नही इसकी स्मृतियाँ भी खो दी
अब मैं चाहूँ तब भी चोर देवता से पीछा नही छुड़ा सकती
वे प्रेत अब हर जगह मेरे साथ होते हैं

सिग्नल्स में कुपोषित फूले पेट के साथ ये प्रेत
मुझसे गुब्बारे खरीद लेने की ज़िद करते हैं
मेरे पास पैसे नहीं हैं मैं सिर्फ इसलिए नही खरीदती
फिर भी वे समझते हैं कि मैं झूठ कह रही हूँ
वे मेरा पीछा करना शुरू करते हैं
हर जगह ऑफिस लाइब्रेरी पार्किंग

अलमारी के नीचे की धूल झाड़ने
लगभग जमीन से सर सटाये
मैं झाडू अंदर डालती हूँ और उनकी आँखें दिखती हैं
भूरे-खसखसे रूखे केशों के बीच
मुझे याद नहीं आता है
शायद मैंने उनके हिस्से का तेल भी चुराया हो
वे काले -पीले दांतों के साथ किलकारी मारकर हँसते हैं
मैं डरकर दीवारों से घिरे कोने में
घुटनों पर सर रखे सहमी सी बैठ जाती हूँ।