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चौंक उट्ठा हूँ तिरे लम्स के एहसास के साथ / राग़िब अख़्तर

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चौंक उट्ठा हूँ तिरे लम्स के एहसास के साथ
आ गया हूँ किसी सहरा में नई प्यास के साथ

तब भी मसरूफ़-ए-सफ़र था मैं अभी की मानिंद
ये अलग बात कि चलता था किसी आस के साथ

ढूँढता हूँ मैं कोई तर्क-ए-तअल्लुक़ का जवाज़
अब गुज़ारा नहीं मुमकिन दिल-ए-हस्सास के साथ

हो रहा है असर-अंदाज़ मिरी ख़ुशियों पर
उम्र का रिश्ता-ए-देरीना जो है यास के साथ

जिस्म के शीश-महल की है यही उम्र जनाब
जब तलक निभती रहे तेशा-ए-अनफ़ास के साथ