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चौकीदार / भास्कर चौधुरी
Kavita Kosh से
वह रातभर
घूमता है हमारी गलियों में
पिछवाड़े में फेंककर टार्च की रौषनी
करता है अपनी लाठी से ठक-ठक
बजाता है ह्निसिल
हम सोयें ताकि
खतरों से महरूम
महफ़ूज़ -
क्या ख़बर उसे पर
ग़ायब हमारी आँखों से नींद!!