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चौकीदार / हरीश करमचंदाणी
Kavita Kosh से
अँधेरे और सन्नाटे को चीरती
गूंजती हैं आवाज़
जागते रहो
यह आवाज़ सिर्फ वे सुनते हैं
जो जाग रहे होते हैं
सोये हुए लोग सोये ही रहते हैं
सोचता हूँ
सोये हुओं को
जगाने को
जो कहे
वह आदमी कब आएगा