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चौकी बैठाना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

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होरे केवाड़ लगाय रे बनियाँ चांदो सौदागर रे।
होरे चौकी बैठावे रे दैवा सौदागर रे॥
होरे बरन-बरन चांदो चौकिया बैठावे रे।
होरे ऊपर बैठावेले रे चांदो गरूर बाहन रे॥
होरे नीचे जे बैठावेले रे चांदो मेगल पठान रे।
होरे जहाँ-जहाँ बैठावले रे चांदो निजी रखवार रे॥
होरे दुआरहाँ ठाढ़ रे दैवा गजमोती हाथी रे।
होरे माझ तो दुआरी रे दैवा खोखना बिलारीरे॥
होरे नाडा हानी छड़ोरे चाँदो खौकिया दइगे रे।
होरे सात चौकी आवेरे चाँदो देलके बैठाय रे॥
होरे चारो दिगे आवेरे चाँदी गदचिरि अयल रे॥
होरे हेमतबाड़ी डांगर लिये चौकिया जगावे रे।
होरे आंगन में आयरे चौकीदार आवे नहीं पावै रे॥
होरे जैकर जे चौकी रे पड़तो मारिगे नड़ावे रे।
होरे निद छोड़ि देले हे माता मैना बिषहरी रे॥
होरे चौकी पहरुदार रे दइबा गेल अलसाय रे।
होरे चौकी देखाये हे माता रोदना कइले रे॥