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चौपाटी, चौराहों पर / नईम

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चौपाटी, चौराहों पर क्यों खड़ा कर दिया,
हमने अपनी हीरों को-
अपने राँझों को?

आज घिनौने व्यवसायी ने
सुंदर को अपरूप कर दिया,
कलकल बहती धाराओं को
छल से, बल से कूप कर दिया।

निपट दुधमुँहों को असमय ही बड़ा कर दिया,
क्रय करके निर्वस्त्र कर दिया
फिर लाजों को।

महज कल्पनाओं के पुतले
जो कल तक सच्चे होते थे,
निर्माता की प्रेम-पीर को,
भीतर-बाहर से ढोते थे,

अब न लगाम रही हाथों में सृष्टाओं के
सुबहों को दुत्कारा,
दुलराया साँझों को।

डँसकर शायद पलट गई है
इस युग को जहरीली नागिन।
सूर न हो पाएँगे फिर से,
और न वो मीरा बैरागिन।

चादर चढ़ा रहे बढ़-चढ़ कर दरगाहों पर
क़त्ल किया है जिनने
हीरों को राँझों को।

गाते-गाते लगे चीखने
सुर सारे कनसुरे हो गए,
संस्पर्श सुख के, सुंदर के,
ले-देकर खुरदरे हो गए;

अनायास सहराओं में क्यों खड़ा कर दिया,
हमने अपने मगरों को/अपने माँझों को?