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चौराहे के मोड़ पर / उत्पल बैनर्जी / प्रोमिता भौमिक

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चौराहे के मोड़ पर
अकारण ही निर्लिप्त हो उठी हूँ
मल्टीप्लेक्स के अँधेरे-उजाले को पार कर
बाइलेन से होती हुई चली जा रही हूँ

प्रेम में पड़ने से ठीक पहले
राजनीति-धर्म-ईश्वर --
सभी कुछ निरुत्तर हैं आज

ठण्डी कॉफीशॉप में
अपने हाथ पर हाथ रख
अकेले-अकेले कैपचीनो की चुस्की
ख़ुद को मानो नार्सिसिस्ट-जैसा महसूस होता है

इस उदासीनता का
कोई समीकरण नहीं है.

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी