भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चौराहे तक लाए / रामगोपाल 'रुद्र'
Kavita Kosh से
चौराहे तक लाए, अब आगे की राह बताओ।
नयनों में यह कौन झलककर सहसा छिप जाता है,
चाव जगाता है प्राणों में पावस भर लाता है?
यह रहस्य-छायातन क्या है, परिचय तुम्हीं कराओ।
चक्कर ही तो रहा अभी तक, कितना क्या भरमाया!
अग्निपरीक्षा लेकर भी क्या तोष नहीं पाया?
सीधी राह दिखाओ अब तो घूम न और घुमाओ।
तुम चाहो तो बात बड़ी क्या, मंज़िल मिले पलक में,
कबसे दौड़ रहा हूँ बाहर, अब तो घर पहुँचाओ।