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चौराहों पर पिटी डौंडियाँ गली गली विज्ञापन है / ऋषभ देव शर्मा

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चौराहों पर पिटी डौंड़ियाँ, गली-गली विज्ञापन है
कफ़न-खसोटों की बस्ती में ‘शैव्या’ का अभिनंदन है

आज आदमी से नागों ने यारी करने की ठानी
सँभल परीक्षित ! उपहारों में ज़हरी तक्षक का फन है

आश्वासन की राजनीति ने लोकरीति से ब्याह रचा
मित्र ! श्वेत टोपी वालों का स्याही में डूबा मन है

ये बिछुए, पाजेब, झाँझरें और चूड़ियाँ लाल-हरी
दुलहिन का शृंगार नहीं है, परंपरागत बंधन है

सड़कों के घोषणापत्र में बटिया का उल्लेख हुआ
लगता है, कुछ षड्यंत्रों में व्यस्त हुआ सिंहासन है