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च्यार अचपळा चितराम (1) / विजय सिंह नाहटा
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कठै ई दूर बिरखा है
डूंगर री गम्योड़ी चोटी सी
धवळा बादळ री हलचल
अंतहीण ओ दीठाव
सूंत‘र ले जावै सम्मोहण में
ऊपर चोटी माथै
अरे! ओ कैड़ो उच्छाव है
उपराड़ै रो।