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छँट जाएँगे बादल काले-काले / ब्रजमोहन
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छँट जाएँगे बादल काले-काले
मिल-जुल के आओ भैया होंगे उजाले ... छँट
सोचो रे भाई क्यूँ हैं दुनिया में लोग ग़रीब
सोचो रे भाई क्यूँ हैं अपने ही बिगड़े नसीब
सोचो रे छीने कौन
मेहनत के मुँह से निवाले ... छँट
सोचो रे भाई दुनिया मेहनत के बल पर जवान
मज़दूर मिल के औ’ धरती की दौलत किसान
सोचो रे भाई क्यूँ
मेहनत के पाँवों में छाले ... छँट
सोचो रे भाई पैसेवाले हैं क्यूँ पैसेवाले
सोचो रे भाई किसकी मेहनत पे डाके ये डाले
सोचो रे भाई किसके
दम पे हैं ये पैसेवाले ... छँट
सोचो रे भाई कैसे बदलेंगे दिन ये हमारे
मेहनत को जो भी लूटें दुश्मन हैं वो अपने सारे
ओ हाथोंवाले तू
अब अपने हाथ उठा ले ... छँट