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छंद 37 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

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दोहा
(श्रीराधा-माधव की एकरूपता-वर्णन)

एक रूप आनंद-मय, श्री राधा-ब्रजचंद।
करत बिबिध-लीला-ललित, जेहिँ न जान सु्रति-छंद॥

भावार्थ: आनंदमय ‘एक प्राण, दो देह’ रूपात्मक ‘श्रीराधा-माधव’ नाना प्रकार की ऐसी-ऐसी ललित-लीलाएँ करते हैं जिनका पारावार न तो ‘श्रुति’ ही को मिला और न ‘स्मृतियों’ को ही मिला, वे अब तक भी अज्ञात ही रहीं।