भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छंद 52 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दोहा
(सरस्वती अनुग्रह-वर्णन)

चिंता और उछाह मैं, पर्यौ जानि द्विज-दीन।
बिधिहि तुरत भजि भारती, मात अनुग्रह कीन॥

भावार्थ: किंतु चिंता और उत्साह में (जिसको कि आगे कह आए हैं) मुझको पड़ा देख भगवती शारदा, ब्रह्माजी का शीघ्र संग त्यागकर मुझ आधीन के निकट अत्यंत अनुग्रह से प्राप्त हुईं।