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छज्जे ऊपर बन्ना बैठा दिल खोल के / हिन्दी लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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छज्जे ऊपर बन्ना बैठा दिल खोल के
बन्नी को बुलाये टेलीफोन कर के
कमरे में से दादी बोली हंस-हंस के
बन्नी नहीं आये टेलीफोन सुन के
जाओ जी बन्ना तो घोड़ी चंढ के
लाओ जी बन्ना गठ जोड़ा कर के
छज्जे ऊपर बन्ना बैठा दिल खोल के
बन्नी को बुलाये टेलीफोन कर के
कमरे में से मम्मी बोली हंस-हंस के
बन्नी नहीं आये टेलीफोन सुन के
जाओ जी बन्ना तो घोड़ी चंढ के
लाओ जी बन्ना गठ जोड़ा कर के
छज्जे ऊपर बन्ना बैठा दिल खोल के
बन्नी को बुलाये टेलीफोन कर के
कमरे में से भाभी बोली हंस-हंस के
बन्नी नहीं आये टेलीफोन सुन के
जाओ जी बन्ना तो घोड़ी चंढ के
लाओ जी बन्ना गठ जोड़ा कर के