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छटपटाय केॅ दिन गुजरै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
छटपटाय केॅ दिन गुजरै छै, ऊठी-बैठी रात जी।
अमचैन सें सुतली दुनियाँ, कौनें करतै बात जी?
छुटकारा भेल्हौ पीड़ासे
ई ते बढ़ियाँ बात जी।
अंतहीन बिछुड़न केॅ कारण
सबसे बड़ोॅ आघात जी।
सब दिन हमरा आँखीं खातिर घटा घोर बरसात जी
छटपटाय केॅ दिन गुजरै छै, ऊठी-बैठी रात जी।
सूर्य उगै छे डूबी जाय छै,
रात बाद हो जाय छै भोर।
मतुर नयन केॅ नैं मिल्लेॅ छै
जेदिन नैं चूथै छैॅ लोर।
इंतजार दारुण होय जाय छै, दिल पर मारै लात जी।
छटपटाय केॅ दिन गुजरै छै, ऊठी-बैठी रात जी।
जों पहरा छै चारों दिशतेॅ
नुकाय चोराय केॅ आबी जा।
नूनू नैं सूतै छै जल्दी
गीत नाद तोय गाबी जा
सच-सच बोलॅ कहिया होयतै हमरा मुलाकात जी?
छटपटाय केॅ दिन गुजरै छै, ऊठी-बैठी रात जी।
12/04/15 रात के 9 बजे