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छटपटाहट / साधना सिन्हा
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धूप में छटपटाते
जन्तु को
नहीं बचाया मैंने
सोचा
मुक्त हो जाये
चौसठ करोड़ योनियों
में से
एक तो
कम हो जाये
पर छटपटाहट की लहर
देह में सिहर गई
छटपटाऊँ
उसी तरह मैं
निरपेक्ष
देखें सब
जीवन से
मुक्त होने का
आह्लाद क्या
मुझमें
होगा तब ?
जन्म देना
करना मुक्त
उसका काम
असहाय होना
तड़फड़ाना
कर्मों का
अपने जन्म-जीवन का दण्ड ।