छठमोॅ अध्याय / श्री दुर्गा चरितायण / कणीक
(यै छठमोॅ अध्याय में मेधा ऋषि राजा सुरथ के बताबै छै कि आपनोॅ नौकर, चण्ड-मुण्डोॅ केबात सुन शुम्भेॅ आपनोॅ सेनापति धुम्रलोचनोॅ के कुछु हेदायतोॅ साथें देवी लग भेजै छै जे यहाँ मराय जाय छै, जे देवी माहात्म्य में धुम्रालोचन वध कही केॅ छै।)
सुनथैं वचन सब देवी केॅ,
सुग्रीव शुम्भोॅ लग गेलै।
दम्भोॅ से सनलो देवी के सुनि,
शुम्भ अति कोपित भेलै।
आदेश देलकै धूम्रलोचन केॅ तुरत वहाँ जाय के,
वै गर्विता नारी घसीटने झोंटोॅ पकड़ी लाय के।
आदेश पैथैं सेनापति, फिर दैत्य सेना साथ लै,
गेलै हिमालय पर वहाँ, देवी जहाँ तखनी रहै।
ललकार दै केॅ धूम्रलोचन कालिका सें बोललै,
चल शुम्भ आरो निशुम्भ लग तों दम्भ सें मुँह खोललै।
गर मुदित मन लै दैत्य राजोॅ लग तों नैं जैभौॅ अभी,
तेॅ झोंटबा धरि घीसीयैनें हम्में लै जैभौं तभी।
देवीं कहलकै सेना नायक तों अति बलवान छौॅ,
हम्में करब की? जोरा-जोरी पर तोरॉे जब ध्यान छौं?
सुनि बचन देवी धूम्रलोचन, दौडत्रलै देवी धरै,
”हूं“ शब्द मात्रहैं अम्बिका के भसम बनि केॅ हौ मरै।
फिन दैत्य सेना अम्बिका के अस्त्र-शस्त्रोॅ के चपट,
सिंहों के पंजा आवि केॅ संहार होते रहलै झट।
कुछ तेॅ मरैले, कुछ जे भागलै पहुँचलै शुम्भोॅ निकट,
बोललै कथा सेनापति के मरण, साथैं रण बिकट।
सुनि क्रोध सें उन्मत शुम्भें चण्ड-मुण्ड पठैलकै,
वै देवि के झोटों पकड़ि लानै हुकुम फिन देलकै॥24॥
(यै अध्याय में उवाच 4 आरो श्लोक 20 छै)